SECL ने महिला की जमीन लेकर दूसरे को दी नौकरी दी,अब बेटे को मिलेगा हक, 31 साल बाद मिला इंसाफ

SECL ने महिला की जमीन लेकर दूसरे को दी नौकरी दी,अब बेटे को मिलेगा हक, 31 साल बाद मिला इंसाफ
पढ़िए पूरी खबर
एसईसीएल ने महिला की जमीन अधिग्रहण कर केवल मुआवजा दिया और नौकरी खुद को महिला का बेटा बताने वाले दूसरे व्यक्ति को दे दिया। महिला ने लंबी लड़ाई लड़ी जिस पर गैर व्यक्ति को तो नौकरी से निकाल दिया पर महिला के बेटे को इस आधार पर नौकरी नहीं दी. अधिग्रहण के वक्त उसका बेटा पैदा नहीं हुआ था और न ही जमीन का नामांतरण महिला के नाम पर है। महिला की याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को राज्य का दर्जा हासिल है। ऐसे में उसे सद्भभावना, निष्पक्षता और उचित तरीके से काम करना चाहिए। इसके साथ ही महिला के बेटे को समस्त लाभों के साथ नौकरी देने के निर्देश दिए है।
High Court News: बिलासपुर है एसईसीएल प्रबंधनने महिला की जमीन अधिग्रहण कर उसे मुआवजा दिया। पर उसके बेटे की बजाय खुद को उसका बेटा बताने वाले अन्य व्यक्ति को नौकरी दे दी। महिला के द्वारा लंबी लड़ाई लड़ने के बाद अनाधिकृत आदमी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। पर महिला के बेटे को नौकरी इस आधार पर नहीं दी कि अधिग्रहण के वक्त वह पैदा नहीं हुआ था और न ही महिला के नाम जमीन का नामांतरण हुआ था। जस्टिस संजय के अग्रवाल की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एसईसीएल ने अधिग्रहण के बदले मुआवजा दिया है, मतलब वह मानता है कि जमीन महिला की है। इसके अलावा नामांतरण सिर्फ कब्जे का प्रमाण है, स्वामित्व का नहीं। हाई कोर्ट में अपने फैसले में सार्वजनिक उपक्रम को निष्पक्षता और सद्भावना से काम करना चाहिए कहा है तथा यह भी कहा है कि गलती की सजा याचिकाकर्ता को नहीं मिलना चाहिए। इसके साथ ही ज अधिग्रहण के बदले याचिकाकर्ता महिला के बेट नौकरी दी जाए।
कोरबा के दीपका गांव की निर्मला तिवारी की की 0.21 एकड़ जमीन 1981 में कोयला खदान के लिए अधिग्रहित की गई थी। बदले में एसईसीएल को पुनर्वास नीति के तहत उन्हें मुआवजा और उनके परिवार के सदस्य को नौकरी देनी थी। मुआवजा तो 1985 में दे दिया गया, लेकिन नौकरी एक फर्जी व्यक्ति नंद किशोर जायसवाल को दे दी गई, जिसने खुद को याचिकाकर्ता का बेटा बताकर नौकरी हासिल की थी। याचिकाकर्ता ने एसईसीएल प्रबंधन को धोखाधड़ी की जानकारी दी। लंबी लड़ाई के बाद एसईसीएल ने वर्ष 2016 में नंद किशोर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद महिला ने अपने बेटे उमेश तिवारी को नियुक्ति देने की मांग की। लेकिन एसईसीएल प्रबंधन ने यह कहते हुए नौकरी देने से इनकार कर दिया कि अधिग्रहण की तारीख पर जमीन याचिकाकर्ता के नाम पर म्यूटेट नहीं थी और उसके बेटे का उस वक्त जन्म नहीं हुआ था। हाईकोर्ट ने कहा– म्यूटेशन सिर्फ कब्जे का सबूत,स्वामित्व का नहीं-हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि म्यूटेशन का रिकॉर्ड सिर्फ कब्जे का सबूत है, स्वामित्व का नहीं। जब एसईसीएल ने जमीन के बदले मुआवजा दिया था, तो यह मान लिया गया था कि याचिकाकर्ता ही जमीन की मालिक है। साथ ही कहा कि अगर शुरू में गलत व्यक्ति को नियुक्ति दे दी गई, तो उस गलती को सुधारते समय असली हकदार को उसका हक देना चाहिए था। महज इस आधार पर कि बेटा अधिग्रहण के समय पैदा नहीं हुआ था, उसका दावा खारिज नहीं किया जा सकता।
गलत व्यक्ति को नौकरी देना अन्याय – हाईकोर्ट ने कहा कि एसईसीएल ने न केवल अपने वादे का उल्लंघन किया बल्कि एक गलत व्यक्ति को नौकरी देकर याचिकाकर्ता के साथ अन्याय किया। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता के बेटे को 6 जुलाई 2017 से नियुक्ति दी जाए। इसके अलावा सभी लाभभी उस तारीख से दिया जाए। संविधान से राज्य का दर्जा, निष्पक्षता की उम्मीद-हाईकोर्ट ने मोहन महतो विरुद्ध सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड पर नाराजगी जताई थी। कह कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को राज्य का दर्जा हासिल है। ऐसे में उसे सदभावना, निष्पक्षता और उचित तरीके से काम करना चाहिए।